वो दिल कि था कभी सरसब्ज़ खेतियों की तरह

वो दिल कि था कभी सरसब्ज़ खेतियों की तरह
सुलग रहा है झुलसते हुए थलों की तरह

ये शे'र जिस की ज़मीं को भी मुझ से शिकवे हैं
रहेगा याद पुरानी मोहब्बतों की तरह

किसी जगह पे भी सय्याह दिल ठहर न सका
जहाँ की सैर को निकले मुसाफ़िरों की तरह

उतरती ज़ेहन में भी ख़ुश-गवार धूप कभी
शुरू-ए-गर्मा के खुलते हुए दिनों की तरह

लहू रुलाती है बे-वक़्त तंग करती है
है उस की याद भी बे-रुत की बारिशों की तरह

तुम्हारी चाह का अंजाम देखिए क्या हो
लगा के बैठे हैं दाव जुआरियों की तरह

ख़ुद अपने साए से भी काँप काँप उठता हूँ
मैं सहमा फिरता हूँ मफ़रूर मुलज़िमों की तरह

उस आँख में कोई बे-रंग सी कशिश थी 'रियाज़'
पुराने क़िलओं' में कुंदा इबारतों की तरह


Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close