वो एक लम्हा-ए-रफ़्ता भी क्या बुला लाया तवील क़िस्सा है बतलाऊँ क्या कि क्या लाया जहाँ कहीं भी गया साथ था ग़ुबार-ए-हयात कहाँ से ख़ाक-ए-परेशाँ ये मैं उठा लाया मिरे नसीब में था इश्क़-ए-जावेदाँ लिक्खा वगरना क्यूँ मैं तिरी याद को बचा लाया कहीं भी कुछ भी ब-तरतीब था न वाज़ेह था बस एक ख़ाका-ए-मुबहम सा था बना लाया