वो एक शख़्स कि जो आफ़्ताब जैसा है क़रीब आए तो ताज़ा गुलाब जैसा है ख़ुदा करे कि कभी भी न टूटने पाए ये तेरा मेरा मिलन एक ख़्वाब जैसा है ज़रा भी तेज़ हवा हो तो काँप उठता है वो ख़ुश-जमाल तो शाख़-ए-गुलाब जैसा है कुछ ऐसे लगता है जैसे गुज़र गईं सदियाँ तिरी जुदाई का मौसम अज़ाब जैसा है समय के तेज़ बगूलों की ज़द में ठहरा हूँ मिरे वजूद का दरिया हबाब जैसा है तिरी जबीं पे इबारत है दीन-ए-इश्क़ 'नियाज़' तिरा वजूद मुक़द्दस किताब जैसा है