वो गुल-बदन है सरापा गुलाब जैसा है जहान-ए-हुस्न में वो आफ़्ताब जैसा है हज़ारों रंग समेटे हुए है आँखों में वो शाइ'री की मुकम्मल किताब जैसा है सँवार देता है वो सारी मुश्किलें मेरी हर-इक सवाल ही उस का जवाब जैसा है वो रू-ब-रू हो तो बस देखते रहो उस को कि उस को देखना कार-ए-सवाब जैसा है ज़माना कुछ नहीं समझेगा बस पिए जाओ कि ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब जैसा है किसी मक़ाम पे ठहरा है और न ठहरेगा कि दिल का हाल भी ख़ाना-ख़राब जैसा है हर एक लफ़्ज़ है 'सागर' का क़ीमती मोती वो रख-रखाव में अब भी नवाब जैसा है