वो गुल-फ़रोश कहाँ अब गुलाब किस से लूँ नहीं रहा मिरा साक़ी शराब किस से लूँ तिरी तलाश में इस उम्र-ए-मुस्तआ'र के साल जो राएगाँ गए इन का हिसाब किस से लूँ हयात ख़ुद है सवाल और ख़ुद जवाब अपना सवाल किस से करूँ मैं जवाब किस से लूँ किसी के नाम जो मंसूब अभी नहीं की थी मैं अपनी खोई हुई वो किताब किस से लूँ तुम्हारे बा'द न देखूँ तुम्हारे जैसों को तो ये शबें ये उमंगें ये ख़्वाब किस से लूँ नशा किसी से भी ले लूँ 'शुऊर' आज मगर वो रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-महताब किस से लूँ