वो हुस्न वो ख़ुशबू मिरे किरदार में आ जाए हर शख़्स मुझे देखने बाज़ार में आ जाए चाहूँ भी तो घर को मैं कभी छोड़ न पाऊँ ऐ काश वो रंगत दर-ओ-दीवार में आ जाए कितने ही मज़ालिम हों क़लम चलता रहे बस जितना भी हो पानी इसी तलवार में आ जाए हर शाम शफ़क़ देख के दिल कहता है मेरा शायद यही सुर्ख़ी हर इक अख़बार में आ जाए दीवाना 'शरर' लोगों से अब कहने लगा है जलना हो जिसे साया-ए-अश्जार में आ जाए