वो जो हर-वक़्त सोचता है मुझे ख़ुद से बिछड़ा हुआ मिला है मुझे एक आहट सी आती रहती है कोई तो है जो ढूँढता है मुझे अपना आग़ाज़ हो न हो लेकिन अपने अंजाम का पता है मुझे गहरे पानी की ओर बढ़ते ही ख़ुद-ब-ख़ुद दरिया रोकता है मुझे हाल-ए-दिल जब सुनाना चाहा तो उस ने हँस के कहा पता है मुझे ख़ुद पर आख़िर ग़ुरूर क्यूँ न करूँ उस के हर ख़्वाब ने चुना है मुझे आसमाँ से उतर के चाँद 'सबा' दे के थपकी सुला रहा है मुझे