वो क़ाफ़िला आराम-तलब हो भी तो क्या हो आवाज़-ए-नफ़स ही जिसे आवाज़-ए-दरा हो ख़ामोश हो क्यूँ दर्द-ए-मोहब्बत के गोवाहो दा'वे को निबाहो मिरे नालो मिरी आहो हर रोज़ जो समझाने चले आते हो नासेह मैं पूछता हूँ तुम मुझे समझे हुए क्या हो इस दार-ए-बक़ा में मिरी सूरत कोई देखे इक दम का भरोसा है जो इक दम में फ़ना हो मुझ को न सुना ख़िज़्र ओ सिकंदर के फ़साने मेरे लिए यकसाँ है फ़ना हो कि बक़ा हो