वो किसी का हो चुका है और किसी के साथ है भूल जाओ अब उसे ये भूलने की बात है सुब्ह सूरज की किरन फिर खिड़कियों पर आएगी कौन कहता है मुक़द्दर में अँधेरी रात है ज़ेहन की पगडंडियों पर झिलमिलाता है कोई मेरे घर में जुगनूओं की रात भर बारात है बे-हिसी थी भाइयों में दोस्त भी थे मतलबी मेरे हिस्से में अकेले-पन की कुछ सौग़ात है ख़ुश्क आँखों की नमी मुझ से ये कहती है 'शकील' उस के घर में याद की चारों तरफ़ बरसात है