वो लम्हा भी बीत गया हासिल था जो सदियों का बे-हँगम आवाज़ों का जल्सा नफ़ी नफ़ी सा था नागिन सा बल खाता था जोबन काली रातों का जाती रुत का नश्शा था कुछ शो'ला कुछ शबनम सा जाने कब महफ़ूज़ हुआ पहला दर्द मोहब्बत का धड़कन धड़कन रूप खुला शर्मीली पहचानों का कंचन कंचन पिघला सा रंग रूप का निखरा था रात रात भर जागा था दावा शोख़ फ़क़ीरी का शुस्ता सा शाइस्ता सा बोसा शोख़ तक़द्दुस का अंतर्मन की सोचों का झनन झनन अंदाज़ नया जाने कैसी साअ'त में पहला आँसू टपका था ग़ाज़ा था इक चेहरों पर नक़ली सी मुस्कानों का चाहत की अंगड़ाई को मौसम ने भी नापा था क़ातिल से इक लम्हे ने पीछे मुड़ कर देखा था दरिया दरिया घूमी थी चंचल सी बे-आब हवा