वो माहताब अभी बाम पर नहीं आया मिरी दुआओं में शायद असर नहीं आया बहुत अजीब है यारों बुलंदियों का तिलिस्म जो एक बार गया लौट कर नहीं आया ये काएनात की वुसअत खुली नहीं मुझ पर मैं अपनी ज़ात से जब तक गुज़र नहीं आया बहुत दिनों से है बे-शक्ल सी मेरी मिट्टी बहुत दिनों से कोई कूज़ा-गर नहीं आया बस एक लम्हे को बे-पैराहन उसे देखा फिर इस के बाद मुझे कुछ नज़र नहीं आया हम अब भी दश्त में ख़ेमा लगाए बैठे हैं हमारे हिस्से में अपना ही घर नहीं आया ज़मीन बाँझ न हो जाए कुछ कहो 'अज़हर' सुख़न की शाख़ पे कब से समर नहीं आया