वो रंगत तू ने ऐ गुल-रू निकाली निछावर को गुलों ने बू निकाली मिज़ाज-ए-बू-ए-सुम्बुल कर के मौक़ूफ़ सबा नय निकहत-ए-गेसू निकाली न थी जाने की उस तक राह दिल की छुरी से चीर के पहलू निकाली निकासी जब न देखी यास दिल की बहा के आठ आठ आँसू निकाली हमारी रूह इक रश्क-ए-चमन ने सुँघा के फूल की ख़ुशबू निकाली मिरे सय्याद ने बुलबुल की मय्यत क़फ़स से तोड़ के बाज़ू निकाली किया उस से जो ख़ुश-चश्मी का दावा तिरी जाएगी आँख आहू निकाली सुलैमानी दिखा दी शान तुम ने परी-रू माँग वो ख़ुश-रू निकाली निकाला हुस्न का अरमान तू ने मिरी हसरत न ऐ दिल-जू निकाली चमन में भीनी भीनी बू ने उन की न बसने दी गई शब्बू निकाली दहान-ए-ज़ख़्म से तलवार चूमी ब-शक्ल-ए-बोसा-ए-अब्रू निकाली क़यामत का शबाब उस ने निकाला 'शरफ़' चंगेज़-ख़ानी ख़ू निकाली