वो सलीक़ा हमें जीने का सिखा दे साक़ी जो ग़म-ए-दहर से बेगाना बना दे साक़ी जाम-ओ-मीना मिरी नज़रों से हटा दे साक़ी ये जो आँखों में छलकती है पिला दे साक़ी शो'ला-ए-इश्क़ से छलका दे मिरे शीशे को और बेताब को बेताब बना दे साक़ी हरम-ओ-दैर में बट जाते हैं रिन्दान-ए-वफ़ा हरम-ओ-दैर की तफ़रीक़ मिटा दे साक़ी सुन रहा हूँ कि मयस्सर ही नहीं दुनिया में इक निगह राज़-ए-दो-आलम जो बता दे साक़ी ख़ुश्क है मौसम-ए-एहसास फ़ज़ा प्यासी है ख़ुम के ख़ुम सीना-ए-गेती पे लुंढा दे साक़ी फिर कभी होश न आए तो कोई बात नहीं आज हम जितनी पिएँ उतनी पिला दे साक़ी जोश-ए-मस्ती में बग़ल-गीर हूँ बिछड़े हुए दिल आज इंसान को इंसान बना दे साक़ी ज़िंदगी ख़्वाब-ए-मुसलसल के सिवा कुछ न सही उस की ता'बीर तो 'दर्शन' को बता दे साक़ी