वो शाख़-ए-गुल की तरह मौसम-ए-तरब की तरह मैं अपने दश्त में तन्हा चराग़-ए-शब की तरह ख़याल-ओ-फ़िक्र की सच्चाइयाँ भी शामिल हैं मिरे लहू में मिरे शजरा-ए-नसब की तरह वो अपनी ख़ल्वत-ए-जाँ से पुकारता है मुझे मैं चाहता हूँ उसे हर्फ़-ए-ज़ेर-ए-लब की तरह ख़ुशा ये दौर कि वो भी है साथ साथ मिरे मिरे ख़याल की सूरत मिरी तलब की तरह मैं अपने अहद की आवाज़-ए-ना-रसा ही सही धड़क रहा हूँ दिलों में सुकूत-ए-शब की तरह न खिल के सेर हुआ मैं न जल के राख हुआ कि मेरी प्यास भी है तेरे रंग-ए-लब की तरह