वो शोख़ बाम पे जब बे-नक़ाब आएगा तो माहताब-ए-फ़लक को हिजाब आएगा ख़बर न थी कि मिटेंगे जवान होते ही अजल का भेस बदल कर शबाब आएगा पड़ेगा अक्स जो साक़ी की चश्म-ए-मयगूँ का नज़र शराब में जाम-ए-शराब आएगा हज़ार हैफ़ कि सर नामा-बर का आया है समझ रहे थे कि ख़त का जवाब आएगा कलीम हाँ दिल-ए-बेताब को सँभाले हुए सुना है तूर पे वो बे-नक़ाब आएगा जो आरज़ू है हमारी वो कह तो दें लेकिन ख़याल ये है कि तुम को हिजाब आएगा ये शोख़ियाँ तिरी इस कम-सिनी में ऐ ज़ालिम क़यामत आएगी जिस दिन शबाब आएगा कभी ये फ़िक्र कि वो याद क्यूँ करेंगे हमें कभी ख़याल कि ख़त का जवाब आएगा चला है 'हिज्र' सियहकार बज़्म-ए-जानाँ को ज़लील हो के ये ख़ाना-ख़राब आएगा