वो ज़ुल्म उस ने ढाया है दिल जानता है कहाँ तक मिटाया है दिल जानता है तिरी बेवफ़ाई ने अहल-ए-तलब पर वो सिक्का जमाया है दिल जानता है तुम्ही क्या किसी को भी अपना बना कर जो सदमा उठाया है दिल जानता है तिरी बज़्म में हम ने हर एक ग़म को ब-मुश्किल दबाया है दिल जानता है सर-ए-राह-ए-उल्फ़त तिरी बे-रुख़ी में मज़ा जैसा पाया है दिल जानता है मोहब्बत के साज़-ए-निगारीं पे 'जौहर' जो कुछ हम ने गाया है दिल जानता है