याँ कुफ़्र से ग़रज़ है न इस्लाम से ग़रज़ बस है अगर ग़रज़ तो तिरे नाम से ग़रज़ ऐश-ओ-नशात-ए-ज़ीस्त है सब आप से हुसूल याँ शीशे से ग़रज़ है न है जाम से ग़रज़ तुम पास हो अगर तो बराबर है रात दिन कुछ सुब्ह से ग़रज़ न हमें शाम से ग़रज़ दिल फेर दीजिए न बिगड़ए हुज़ूर आप याँ बोसे से ग़रज़ है न दुश्नाम से ग़रज़ पड़ रहने भर को दीजिए दर पर हमें जगह राहत से कुछ ग़रज़ है न आराम से ग़रज़ आँखें दिला मिलीं हमें रोने के वास्ते नाकामियों से काम न है काम से ग़रज़ 'अंजुम' का शेर कहने से बिकना मुराद है तहसीं से कुछ ग़रज़ है न इल्ज़ाम से ग़रज़