याँ से पैग़ाम जो ले कर गए माक़ूल गए उस की बातों में लगे ऐसे कि सब भूल गए तू तो माशूक़ है तुझ को तो बहुत आशिक़ हैं ग़म उन्हों का है जो वो जान से निर्मूल गए बे-कली अपनी का इज़हार तो करता नहीं मैं गुल-रुख़ाँ देख के तुम मुझ को अबस भूल गए क्यूँकि खटका न रहे सब को उधर जाने का आह क्या क्या न उसी ख़ाक में मक़्बूल गए अपनी नेकी ओ बदी छोड़ गए दुनिया में गरचे दोनों न रहे क़ातिल ओ मक़्तूल गए ज़ुल्फ़ में उस की बहुत रह के न इतराईयो दिल मुझ से कितने ही मिरी जान यहाँ झूल गए पहली बातों का मोहब्बत की 'हसन' ज़िक्र न कर बस वो दस्तूर गए और वो मामूल गए