या सितम कर या करम चाहे सो कर चाहते हैं तुझ को हम चाहे सो कर मार चाहे छोड़ मुझ को जीते जी मैं न छोड़ूँगा क़दम चाहे सो कर बज़्म में महरूम मत रख दे मुझे जाम-ए-मय या जाम-ए-सम चाहे सो कर कुफ़्र या इस्लाम कुछ कर इख़्तियार एक है दैर-ओ-हरम चाहे सो कर मार खाऊँगा पर आने की यहाँ मैं न खाऊँगा क़सम चाहे सो कर अब तो मैं शिकवा करूँगा हो सो हो नाक में आया है दम चाहे सो कर इक ग़ज़ल तो और भी 'बेसब्र' तू इस ज़मीं में कर रक़म चाहे सो कर