याँ तलक के है तिरे हिज्र में फ़रियाद कि बस न हुआ तू भी कभी हाए ये इरशाद कि बस एक बुलबुल भी चमन में न रही अब की फ़सल ज़ुल्म ऐसा ही किया तू ने ऐ सय्याद कि बस बे-सुतूँ खोद के सर फोड़ दिया जी अपना काम ऐसा ही हुआ तुझ से ऐ फ़रहाद कि बस दिल की हसरत न रही दिल में मिरे कुछ बाक़ी एक ही तेग़ लगा ऐसी ऐ जल्लाद कि बस इश्क़ में उस के बगूले कि तिरा ऐ 'ताबाँ' ख़ाक अपनी को दिया याँ तईं बर्बाद कि बस