याँ तो कुछ अपनी ख़ुशी से नहीं हम आए हुए इक ज़बरदस्त के हैं खींच के बुलवाए हुए आते ही रोए तो आगे को न रोवें क्यूँ-कर हम तो हैं रोज़-ए-तव्वुलुद ही के दुख पाए हुए देख कर ग़ैर के साथ उस को कहा यूँ हम ने हो तो तुम चाँद पर इस वक़्त हो गहनाए हुए कल जो गुलशन में गए हम तो अजब शक्ल से आह हिज्र के मारे हुए जी से ब-तंग आए हुए गुल जो ताज़े थे खिले कहते थे शबनम से ये बात देख कर उन को जो वो फूल थे कुम्हलाए हुए आज हैं शाख़ पे जिस तौर से पज़मुर्दा 'नज़ीर' कल इसी तरह से हम होवेंगे मुरझाए हुए