याद आता है समाँ मुझ को ख़ुद-आराई का चाँदनी रात में आलम तिरी अंगड़ाई का आइना आइना-रूयों को ये देता है सबक़ कुछ समझ बूझ के दावा करो यकताई का और भी जोश बढ़ा हो गईं मौजें बे-ताब अक्स दरिया में पड़ा जब तिरी अंगड़ाई का मेरे दिल में मिरी आँखों में हैं तेरी शक्लें ज़ेब देता नहीं दावा तुझे यकताई का दिल हुआ ज़ेर-ओ-ज़बर आह भी हम कर न सके रह गए देख के नक़्शा तिरी अंगड़ाई का