याद फिर भूली हुई एक कहानी आई दिल हुआ ख़ून तबीअत में रवानी आई सुब्ह-ए-नौ नग़्मा-ब-लब है मगर ऐ डूबती रात मेरे हिस्से में तिरी मर्सिया-ख़्वानी आई ज़र्द-रू था किसी सदमे से उभरता सूरज ये ख़बर डूबते तारों की ज़बानी आई हर नई रुत में हम अफ़्सुर्दा ओ दिल-गीर रहे या तो गुज़रे हुए मौसम की जवानी आई पा गए ज़िंदगी-ए-नौ कई मिटते हुए रंग ज़ेहन में जब कोई तस्वीर पुरानी आई ख़ुश्क पत्तों को चमन से ये समझ कर चुन लो हाथ शादाबी-ए-रफ़्ता की निशानी आई याद का चाँद जो उभरा तो ये आँखें हुईं नम ग़म की ठहरी हुई नद्दी में रवानी आई दिल ब-ज़ाहिर है सुबुक-दोश-ए-तमन्ना 'मख़मूर' फिर तबीअत में कहाँ की ये गिरानी आई