याद का फूल सर-ए-शाम खिला तो होगा जिस्म मानूस सी ख़ुशबू में बसा तो होगा क़तरा-ए-मय से दबा रात न तूफ़ान-ए-तलब मुझ पे जो बीत गई रात सुना तो होगा कोई मौसम हो यही सोच के जी लेते हैं इक न इक रोज़ शजर ग़म का हरा तो होगा ये भी तस्लीम कि तू मुझ से बिछड़ के ख़ुश है तेरे आँचल का कोई तार हँसा तो होगा वो न मानूस हों कुछ ख़ास अलाएम से 'हसन' एक क़िस्सा मिरी आँखों ने कहा तो होगा