याद के शहर मिरी जाँ से गुज़र क़ुर्ब के आख़िरी इम्काँ से गुज़र जल बुझी थी मैं तिरे खिलने तक अब मिरी ख़ाक-ए-परेशाँ से गुज़र अक्स बुनने लगा सहरा तेरे मेरे सूरज रुख़-ए-ताबाँ से गुज़र ज़ख़्म गर मेरे हो कुछ और अता हाँ अबस नश्तर ओ पैकाँ से गुज़र उठ चुकीं गुल-सुख़नी की रस्में गोश-ए-जाँ हर्फ़-ए-बहाराँ से गुज़र आख़िरी लौ न बुझा जाए कहीं शब-ए-जाँ में रुके मेहमाँ से गुज़र ऐ मिरे अब्र मिरी मिट्टी की तिश्नगी पर सर-ए-मिज़्गाँ से गुज़र आँख अब तीरगी-ए-ग़म से बुझी अश्क-ए-ख़ूँ जश्न-ए-चराग़ाँ से गुज़र