याद की पोटली निकलती है रात से रौशनी निकलती है मुश्किलें राह भी दिखाती हैं पत्थरों से नदी निकलती है चाहे जितना भी वो मुकम्मल हो आदमी में कमी निकलती है सोचती हूँ जो तेरी बातों को बैठे बैठे हँसी निकलती है जब भी दिल की तलाशी लेती हूँ तेरी ख़्वाहिश छुपी निकलती है इस्तिफ़ादा है साथ चलने में बात से बात ही निकलती है शोर कितना भी तेज़ हो चाहे बा'द में ख़ामुशी निकलती है