याद में तेरी दो-आलम को भुलाना है हमें उम्र भर अब कहीं आना है न जाना है हमें कहते हैं इश्क़ का अंजाम बुरा होता है अब तो कुछ भी हो मोहब्बत को निभाना है हमें ख़लिश-ए-इश्क़ से बेचैन है दिल एक तरफ़ इस पे यारब ग़म-ए-हस्ती भी उठाना है हमें हाए वो आग जो मुश्किल से जली थी दिल में आज उस आग के शो'लों को बुझाना है हमें रुख़्सत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना नहीं मिलती न मिले क़िस्सा-ए-शौक़ निगाहों से सुनाना है हमें आप काँटों से जो बचते हुए चलते हैं चलें दामन-ए-शौक़ को फूलों से बचाना है हमें हाए इस शर्म-ए-मोहब्बत का बुरा हो 'ताबाँ' इश्क़ का राज़ ख़ुद उन से भी छुपाना है हमें