याद-ए-माज़ी ये क्या किया तू ने हँसते हँसते रुला दिया तू ने मुस्कुरा कर मिज़ाज क्या पूछा दुखती रग को दबा दिया तू ने रंग-ओ-बू में भी दिलकशी न रही रंग ऐसा चढ़ा दिया तू ने मर्हबा ऐ ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ उजड़े घर को बसा दिया तू ने सुब्ह-ए-उम्मीद शुक्रिया तेरा तीरगी को मिटा दिया तू ने ग़म में आया नज़र नशात का रंग हम को जीना सिखा दिया तू ने जिस 'नज़र' से मिला था प्यार कभी उस 'नज़र' से गिरा दिया तू ने