यादगार-ए-ज़माना हैं हम लोग सुन रखो तुम फ़साना हैं हम लोग ख़ल्क़ से हो गए हैं बेगाने शायद उस के यगाना हैं हम लोग क्यूँ न हर गुल पे होवें ज़मज़मा-संज बुलबुल-ए-ख़ुश-तराना हैं हम लोग सब के मख़दूम हैं वले तेरे ख़ादिम-ए-आस्ताना हैं हम लोग तीर-ए-मिज़्गाँ है क्या बला जिस के जान-ओ-दिल से निशाना हैं हम लोग यार आगे निकल गए हैं कई पीछे उन के रवाना हैं हम लोग अपने जी में समझ तू ज़ुल्फ़-ए-दराज़ क़बिल-ए-ताज़ियाना हैं हम लोग 'मुंतज़िर' शक्ल-ए-बुलबुल-ए-वहशी दुश्मन-ए-आशियाना हैं हम लोग