यादों के साएबाँ में बसर कर रही है रात ख़ाके में ज़िंदगी के धनक भर रही है रात मुझ से है हम-कलाम या तुझ से है उस की बात वीरान रास्तों का सफ़र कर रही है रात मुद्दत से जल रहे हैं यहाँ आस के दिए बुझते चराग़ को भी क़मर कर रही है रात उन की महक है आज मिरे दिल से दूर क्यूँ फूलों से झोलियों को अगर भर रही है रात दिल को किया मलूल और वीरान आँख को कुछ यूँ भी जिस्म-ओ-जाँ में क़दम धर रही है रात रख कर रिदा-ए-इश्क़ में कुछ फूल और ख़्वाब 'शाहीन' आज मेरी तरह मर रही है रात