यार जब हम-कनार होवेगा दिल को मेरे क़रार होवेगा गुज़रा मुझ ख़ाक से जो दामन-कश ये वही शहसवार होवेगा ताब क्या माह-ए-चार-दह को जो टुक उस परी से दो-चार होवेगा मेहर उस रुख़ के आगे अफ़्सुर्दा जूँ चराग़-ए-मज़ार होवेगा गुल नज़ाकत के आगे उस रू के चश्म-ए-बुलबुल में ख़ार होवेगा सर्व इस क़द्द-ए-रास्त के आगे बंदा-ए-चोबदार होवेगा गरचे आलम में हर कोई तेरा आशिक़-ए-ग़म-गुसार होवेगा याद कर हम सा पर न कुई प्यारे फ़िदवी-ए-जाँ-निसार होवेगा ऐ 'जहाँदार' कब वो आइना-रू देखो मुझ से दो-चार होवेगा