यार की तस्वीर ही दिखला दे ऐ मानी मुझे कुछ तो हो इस नज़्अ' की मुश्किल में आसानी मुझे उफ़ भी कर सकता नहीं अब करवटें लेना कुजा ज़ख़्म-ए-पहलू से है वो तकलीफ़-ए-रूहानी मुझे ज़ाहिद-ए-मग़रूर रोने पर मिरे हँसता है क्या बख़्शवाएगा यही अश्क-ए-पशेमानी मुझे दिल को उस पर्दा-नशीं से ग़ाएबाना लाग है खींच लेगा इक-न-इक दिन जज़्ब-ए-रूहानी मुझे यारब आग़ाज़-ए-मोहब्बत का ब-ख़ैर अंजाम हो दिल लगा कर हो रही है क्या पशेमानी मुझे लौ लगी है यार से अपनी तरफ़ खींचेगा क्या जल्वा-ए-नक़्श-ओ-निगार-ए-आलम-ए-फ़ानी मुझे वहशियों के वास्ते क़ैद-ए-लिबास अच्छी नहीं ज़ेब देता है यही तशरीफ़-ए-उर्यानी मुझे जोश-ए-वहशत में ज़मीं पर पाँव पढ़ने का नहीं ले उड़ेगी निकहत-ए-गुल की परेशानी मुझे ख़ाक हो जाने पे भी मुमकिन न होगा दस्तरस हाथ मलवाएगी तेरी पाक-दामानी मुझे दर्द का साग़र भी साक़ी मेरी क़िस्मत में न था शौक़ में करना पड़ा आख़िर लहू पानी मुझे मर्द-ए-जाहिल हूँ कुजा में और कुजा अहल-ए-कमाल 'यास' क्या मा'लूम अंदाज़-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी मुझे