यार क्यूँ गुरेज़ाँ है सीधी राह चलने से मंज़िलें नहीं मिलतीं रास्ते बदलने से जो भी रंग है तेरा बस वही ग़नीमत है चेहरे कब निखरते हैं मुँह पे ख़ाक मलने से तेज़ धूप में आई ऐसी लहर सर्दी की मोम का हर इक पुतला बच गया पिघलने से बन गए सुबूत आख़िर आप अपने जुर्मों का हाथ जो मोअ'त्तर थे फूल को मसलने से कर सका है गदला कौन रौशनी के चश्मे को चाँद बुझ नहीं जाता आँधियों के चलने से सो के तो गँवा बैठा रतजगों की रानाई अब 'क़तील' क्या हासिल तेरे हाथ मलने से