यार ने हम से बे-अदाई की वस्ल की रात में लड़ाई की बाल-ओ-पर भी गए बहार के साथ अब तवक़्क़ो नहीं रिहाई की कुल्फ़त-ए-रंज-ए-इश्क़ कम न हुई मैं दवा की बहुत शिफ़ाई की तुर्फ़ा रफ़्तार के हैं रफ़्ता सब धूम है उस की रहगिराई की ख़ंदा-ए-यार से तरफ़ हो कर बर्क़ ने अपनी जग-हँसाई की कुछ मुरव्वत न थी उन आँखों में देख कर क्या ये आश्नाई की वस्ल के दिन को कार-ए-जाँ न खिंचा शब न आख़िर हुई जुदाई की मुँह लगाया न दुख़्तर-ए-रज़ को मैं जवानी में पारसाई की जौर उस संग-दिल के सब न खिंचे उम्र ने सख़्त बेवफ़ाई की कोहकन क्या पहाड़ तोड़ेगा इश्क़ ने ज़ोर-आज़माई की चुपके उस की गली में फिरते रहे देर वाँ हम ने बे-नवाई की इक निगह में हज़ार जी मारे साहिरी की कि दिलरुबाई की निस्बत उस आस्ताँ से कुछ न हुई बरसों तक हम ने जब्हा-साई की 'मीर' की बंदगी में जाँ-बाज़ी सैर सी हो गई ख़ुदाई की