याद मौसम वो पुराने आए ज़ख़्म हँसने के ज़माने आए दिल की दहलीज़ पे यादों के सिवा कौन आवाज़ लगाने आए अब कहाँ ताब लहू रोने की अब न वो ख़्वाब दिखाने आए लोग जीते हैं लहू पी के यहाँ हम कहाँ प्यास बुझाने आए कह गए बात जो सच थी वर्ना याद कितने ही बहाने आए हर ग़ज़ल में है छुपा वो चेहरा कोई घूँघट तो उठाने आए शाख़ फूलों से झुकी जाती है कोई तो हाथ बढ़ाने आए सुब्ह जब हो तो 'क़मर' मिस्ल-ए-सबा फूल रखने वो सिरहाने आए