यादश-ब-ख़ैर जब वो तसव्वुर में आ गया शे'र ओ शबाब ओ हुस्न का दरिया बहा गया जब इश्क़ अपने मरकज़-ए-असली पे आ गया ख़ुद बन गया हसीन दो आलम पे छा गया जो दिल का राज़ था उसे कुछ दिल ही पा गया वो कर सके बयाँ न हमीं से कहा गया नासेह फ़साना अपना हँसी में उड़ा गया ख़ुश-फ़िक्र था कि साफ़ ये पहलू बचा गया अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया दिल बन गया निगाह निगह बन गई ज़बाँ आज इक सुकूत-ए-शौक़ क़यामत ही ढा गया मेरा कमाल-ए-शेर बस इतना है ऐ 'जिगर' वो मुझ पे छा गए मैं ज़माने पे छा गया