यहाँ है धूप वहाँ साए हैं चले जाओ ये लोग लेने तुम्हें आए हैं चले जाओ बुलावा आया है जाने में कोई हर्ज नहीं यहाँ भी दुख ही सदा पाए हैं चले जाओ वो जिस के वास्ते बुलवाया जा रहा है तुम्हें अगर ये लोग उसे लाए हैं चले जाओ पड़े रहोगे यहाँ कब तलक बुरे हालों वहाँ तो हुस्न के सरमाए हैं चले जाओ मैं क्या बताऊँ वहाँ क्या है जो नहीं है यहाँ नशात-ए-रूह के पैराए हैं चले जाओ मैं रोक पाऊँगा आँसू न रुख़्सती पे मगर कहार डोली जो ले आए हैं चले जाओ तुम्हें तो क़ब्र की मिट्टी भी अब पुकारती है यहाँ के लोग भी उकताए हैं चले जाओ गुरेज़ इतना भी साबिर-'ज़फ़र' नहीं अच्छा पयाम उस ने जो भिजवाए हैं चले जाओ