यहाँ के रंग बड़े दिल-पज़ीर हुए हैं दयार-ए-इश्क़ के हाकिम फ़क़ीर होते हैं हर एक दिल में तो ये बर्छियाँ उतरती नहीं कोई कोई तो नज़र के असीर होते हैं हुजूम-ए-बुल-हवसी के घने अंधेरों में कुछ ऐसे ग़म भी हैं जो दस्त-गीर होते हैं हर ऐसे-वैसे से क़ुफ़्ल-ए-क़फ़स नहीं खुलता इस इम्तिहाँ के लिए कुछ हक़ीर होते हैं तुम्हारे शहर में किस को है जान देने का शौक़ मगर वहाँ भी जो साहब-ज़मीर होते हैं