यहाँ किसे हँसने की फ़ुर्सत रक्खी है एक से निमटो दूसरी आफ़त रक्खी है हर जानिब इक खेल है आपा-धापी का मंज़र मंज़र कैसी वहशत रक्खी है सोचूँ तो बाज़ार भी छोटा लगता है घर के अंदर इतनी ज़रूरत रक्खी है तेरे दिल को प्यार से माला-माल करे फूल के अंदर जिस ने निकहत रक्खी है एक के दुख में सारे रोया करते हैं घर में अभी अज्दाद की दौलत रक्खी है