यहाँ माहौल कुछ ऐसा हुआ है मोहब्बत लफ़्ज़ तक रुस्वा हुआ है हुकूमत रौशनी ने छोड़ दी अब तभी ज़ुल्मत तिरा क़ब्ज़ा हुआ है हमारी जीत पक्की हो गई थी हमें शक है कहीं धोका हुआ है बढ़ी है यूँ तो महँगाई वतन में लहू अपना मगर सस्ता हुआ है तिरा मरहम तुझे ही हो मुबारक कि इस से ज़ख़्म और गहरा हुआ है तुम्हें मालूम हो 'हमज़ा' तो बोलो निज़ाम-ए-शहर क्यों बिगड़ा हुआ है