यहाँ मकीनों से ख़ाली मकान रहते हैं मोहब्बतें नहीं रहतीं गुमान रहते हैं ख़ुदा करे कि सुने तू ज़बान-ए-ख़ामोशी तिरे पड़ोस में कुछ बे-ज़बान रहते हैं न कीजे तकिया बुज़ुर्गों की ढलती छाँव पर कहाँ सरों पे सदा साएबान रहते हैं यही जहाँ है हमारा जहान-ए-गुमशुदगी यही निशान कि बस बे-निशान रहते हैं मोहब्बतें जिस उफ़ुक़ से तुलूअ' होती हैं वहीं पे मिल के ज़मीं आसमान रहते हैं तिरे सुलूक ने धुँदला दिए सब अफ़्साने हम अपने से भी बहुत बद-गुमान रहते हैं हर एक शख़्स को मजबूर 'आह' मत जानो कि शीशे भी कहीं बन कर चटान रहते हैं