यहाँ मौसम भी बदलें तो नज़ारे एक जैसे हैं हमारे रोज़-ओ-शब सारे के सारे एक जैसे हैं हमें हर आने वाला ज़ख़्म-ए-ताज़ा दे के जाता है हमारे चाँद सूरज और सितारे एक जैसे हैं ख़ुदाया तेरे दम से अपना घर अब तक सलामत है वगर्ना दोस्त और दुश्मन हमारे एक जैसे हैं कहीं गर फ़र्क़ निकलेगा तो बस शिद्दत का कुछ वर्ना यहाँ पर ग़म हमारे और तुम्हारे एक जैसे हैं मैं किस उम्मीद पे दामन किसी का थाम लूँ 'अख़्तर' कि सब से दोस्ती में अब ख़सारे एक जैसे हैं