यहाँ से अब कहीं ले चल ख़याल-ए-यार मुझे चमन में रास न आएगी ये बहार मुझे तिरी लतीफ़ निगाहों की ख़ास जुम्बिश ने बना दिया तिरी फ़ितरत का राज़दार मुझे मिरी हयात का अंजाम और कुछ होता जो आप कहते कभी अपना जाँ-निसार मुझे बदल दिया है निगाहों से रुख़ ज़माने का कभी रहा है ज़माने पे इख़्तियार मुझे मैं जब चला हूँ ब-ईं ज़ौक़-ए-बंदगी ऐ दोस्त क़दम क़दम पे मिले आस्ताँ हज़ार मुझे ये हादसात जो हैं इज़्तिराब का पैग़ाम ये हादसात ही आएँगे साज़गार मुझे 'अज़ीज़' अहल-ए-चमन की शिकायतें बे-सूद फ़रेब दे गई रंगीनी-ए-बहार मुझे