यहाँ से चलेंगे वहाँ से चलेंगे कहोगे तो सारे-जहाँ से चलेंगे कमाँ से चले हैं न जो तीर अब तक वही तीर तेरी ज़बाँ से चलेंगे अचानक ही जिन को ठहरना पड़ा है मिरे पाँव के वो निशाँ से चलेंगे जिन्हें शौक़-ए-मंसब-ओ-इनाम है वो झुका कर नज़र बे-ज़बाँ से चलेंगे मिटा देंगे हस्ती-ओ-बस्ती तुम्हारी वो नाले जो दर्द-ए-निहाँ से चलेंगे