यही बहुत है कि अहबाब पूछ लेते हैं मरे उजड़ने के अस्बाब पूछ लेते हैं मैं पूछ लेता हूँ यारों से रत-जगों का सबब मगर वो मुझ से मिरे ख़्वाब पूछ लेते हैं इसी गली से जहाँ आफ़्ताब उभरा है कहाँ गया है वो महताब, पूछ लेते हैं अब आ गए हैं तो इस दश्त के फ़क़ीरों से रुमूज़-ए-मिम्बर-ओ-मेहराब पूछ लेते हैं किसी को जा के बताते हैं हाल-ए-दिल 'नासिक' किसी से हिज्र के आदाब पूछ लेते हैं