यही फ़क़त मेरी ज़िंदगी है तिरी इताअ'त ही बंदगी है वो आज सैर-ए-चमन को आए गुलों के चेहरों पे ताज़गी है ये उन की ज़र्रा-नवाज़ियाँ हैं जो दिल की बस्ती में तीरगी है जो मैं ने पूछा वफ़ा का मतलब वो हँस के बोले दिवानगी है ये उन का दस्त-ए-करम है मुझ पर जो बात अब तक बनी हुई है ये ज़ख़्म-ए-दिल की दवा है यारों 'सबा' की जो शेर-ओ-शायरी है