यही नहीं कि हमीं हैं यहाँ बिखरते हुए इधर तो देख रहा हूँ सभी को डरते हुए ये दिल-फ़रेब चराग़ाँ ये क़हक़हों के हुजूम मैं डर रहा हूँ अब इस शहर से गुज़रते हुए तमाम रात हम अफ़सुरदगान-ए-महफ़िल-ए-ख़्वाब गुज़ारते हैं सितारों से बात करते हुए शफ़क़ का रंग भी आँखों में अभी बाक़ी है दिखाई दे रही है रात भी उभरते हुए ये आसमान है बेहतर कि आशियाँ मेरा परिंद सोच रहा है उड़ान भरते हुए ये कारवान-ए-बदन है सफ़र-गुज़र-ए-'ख़याल' जरस की गूँज पे कुछ देर को ठहरते हुए