यही नहीं कि वो बे-ताब-ओ-बे-क़रार गया मिरी रगों में जो इक ज़हर सा उतार गया बुझे हुए दर-ओ-दीवार देखने वालो उसे भी देखो जो इक उम्र याँ गुज़ार गया वफ़ा के बाब में इस की तो कुछ कमी न हुई मैं आप अपनी ख़ुशी से ये बाज़ी हार गया हवा-ए-सर्द का झोंका भी कितना ज़ालिम था ख़याल-ओ-ख़्वाब के सब पैरहन उतार गया