यक दो जाम और भी दे तू साक़ी न रहे दिल में आरज़ू साक़ी मेरी तस्कीं न होगी साग़र से मुँह से मेरे लगा सुबू साक़ी रात ओ दिन मय-कशों को रहती है तेरी ही याद ओ जुस्तुजू साक़ी रिंद-ए-मुफ़्लिस को दे है ज़्याद शराब भाई मुझ को तिरी ये ख़ू साक़ी आह तुझ बिन हैं ज़ार-ओ-नालाँ हम भूली मस्ती की हाव-हू साक़ी शीशा-ए-मय की तरह से हम आज रखते हैं गिर्या दर-गुलू साक़ी किसी के आगे मिस्ल-ए-साग़र हम लाते हैं दस्त-ए-आरज़ू साक़ी लाते हैं मिस्ल-ए-शीशा-ए-बादा तेरे ही आगे सरफ़रू साक़ी रो नहीं उस को बज़्म-ए-मस्ताँ में जिस के तईं तू न देवे रू साक़ी दे 'जहाँदार' को वो मय जिस का होवे गुल का सा रंग-ओ-बू साक़ी