यक ठार ऊ निगार खड़ी थी नज़र पड़ी यक बुल-हवस के हात चड़ी थी नज़र पड़ी किसवत नेवी नयन में ख़ुमारी बदन पे जोत लट खिस पटी सूँ मुख पे पड़ी थी नज़र पड़ी मोती सूँ होर सुने से न जानों दिया है कुन भर सब अपस के तन कूँ मुड़ी थी नज़र पड़ी बालाँ में तेल बर में गुलाँ भर गला संदल तम्बूल की अधर पे धड़ी थी नज़र पड़ी 'बहरी' अब उस परी की परत कूँ पतिया नको बाज़ी कुछ और भाँत खड़ी थी नज़र पड़ी